Job opportunities of Eco-Detective for BBA/ MBA/ PGDM in Marketing; CTC 7 to 48 LPA
It is the impact on the economic well being of the society & the HDI of the nation by about 300 of their students saving 25 lives every year.
That means 75,000 lives saved in a decade and the escalating wealth of (75,000 X 4) about 3 lac family members in their district only.
Because Talent Acquisition Executives are responsible for recruiting Eco Detective/ Eco-Investigator
The average ED/EI is estimated to enroll approximately 300 students from their district.
These students, after completing the course, are estimated to save 25 lives annually.
This translates to a staggering 75,000 lives saved over a decade.
Additionally, the wealth of roughly 3 lakh dependents in each district is projected to increase significantly.
By recruiting just 100 ED/EI, a Talent Acquisition Executive can potentially impact the financial well-being of over 3 crore dependent family members.
This positive impact will ultimately contribute to boosting the nation's Human Development Index (HDI) and the overall financial health of society.
That’s why the Talent Acquisition Executive role is called by us as "Eco-Angel"
कौस्तुभ जब पैदा हुआ था तब दुनिया 20 वी सदी पूरी करके 21वीं सदी के स्वागत में खड़ी थी।
शाइनिंग इंडिया के बावजूद वैश्विक मंदी का असर कौस्तुभ के देश के कृषि पर छाता जा रहा था।
ऐसे में गांव-गांव से लोग खेती छोड़ शहरों की ओर रोजगार के अवसर व उसके लिए आवश्यक शिक्षा को पकड़ने के प्रयास में बढ़ रहे थे।
स्थिति यह हो चुकी थी की जिसके एक से ज्यादा भाई थे, गांव में उसकी शादी होना ही दूभर होता जा रहा था ।
कौन मां बाप अपनी बेटी को उठा कर, जिंदगीभर की गरीबी के गड्ढे में धकेलने को तैयार होते?
देश में हर साल दो करोड़ बच्चे तो पैदा हो रहे थे, पर सारी नौकरियां, जिनमें नौकरी पर लगने से लेकर रिटायर होने के बीच 30 से 44 साल तक कमाई के शाश्वत अवसर होते हैं; सिर्फ तीन करोड़ से भी कम लोगों के लिए ही मुहैया थीं।
जिसका मतलब था 3 करोड़ भागित 44 साल। यानी किसी भी 1 साल में अधिकतम 7 लाख से कम लोगों को ही ऐसी नौकरी मिल पाती थी।
जबकि देश में गांवों की संख्या ही 6 लाख से ज्यादा है।
तो होता यह था, की आस पड़ोस के गांव में से किसी एक की ऐसी नौकरी लगी और बाकी के सारे युवा देखा-देखी उसकी नकल कर जवानी बर्बाद हो जाने तक; नौकरी के फॉर्म भरने और तैयारी करने में जुटे रहते।
स्थिति बिगड़ते बिगड़ते ऐसी हो गई, कि ढेर सारे ऐसे लोग, जो खुद नौकरी ना पा पाए; पर परीक्षा दे-दे कर इतने माहिर हो गए; कि दूसरों को परीक्षा दिलाने में अपनी फीस वसूलने की जुगाड़ बनाने लगे।
इस प्रकार कोचिंग सेंटरों का नया व्यवसाय शुरू हो गया।
यह स्थिति बिगड़ते बिगड़ते इतनी भयानक हो गई कि रोजगार मुहैया कराने के नाम पर चुनाव होने लगे। और संसद में आवाज उठाने के लिए युवा वर्ग को मच्छर मार धुआँ तक उड़ाना पड़ गया।
ठीक इसी दरम्यान कौस्तुभ ने ठान लिया एक बागवान बनने का।
बागवान यानी कि पर्यावरण का सबसे बड़ा सुधारक।
जैसे ऊबड़ खाबड़ जगह को ठीक करके बागवान, आर्थिक साम्राज्य की रचना करता है, वैसे ही कोस्तुभ ने बेरोजगार और कुंवारे युवाओं से भरे अपने जिले के, भविष्य को बदलने का बीड़ा उठाया इकोघर® में इको-प्रसारक बनकर।
वह सारे कोचिंग, जो अभी तक बेरोजगारों को सपने दिखा कर; अपना पेट पाल रहे थे; उन्ही के नेटवर्क का उपयोग; कौस्तुभ ने युवाओं को; वास्तविक प्रगति में भागीदार बनाने के लिए; करना शुरू किया।
जैसे कंकड़ों में से बीज पहचानना एक बोरिंग सा काम होता है, वैसे ही सारे ट्यूटरों में से प्रगति मैं मददगार व्यक्ति ढूंढना भी एक महती काम था।
जिसके लिए कंपनी ने उसे 25 000 प्रतिमाह का स्टाइपेंड दे दिया।
हर जागरूक किसान जानता है बीज को उचित मात्रा में तापमान, आर्द्रता व ऑक्सीज़न मिलने पर उसमें अंकुर निकलने लगते हैं।
वैसे ही कौस्तुभ ने प्रतिदिन अपने इलाके के कंकड़-नुमा ट्यूटरों में से संभावित सहयोगी खौजने हैतु; सभी ट्यूटरों से मिलना शुरू किया।
उन्हें आवश्यक तापमान के तौर पर, उनकी और उनके पूर्व विद्यार्थियों की कमाई के अवसर की जानकारी दी।
आर्द्रता के रूप में पोर्टल पर यूजर आईडी बनाकर दिया।
आवश्यक ऑक्सीज़न के रूप में आवेदन की प्रक्रिया व उससे होने वाली आय के बारे में समझाया।
बीज को उचित आर्द्रता & तापमान मिलने पर उसमें अंकुरण आरम्भ हो जाता है। परन्तु कोई-कोई बीज अपने अंदर छिपी हुई घातक बीमारी, बैक्टीरिया या फफूंदी के कारण आर्द्रता मिलते ही सड़ना शुरू कर देते हैं।
जैसे सड़े बीज से अंकुरण होने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो जाती है, वैसे ही कुछ व्यक्ति उनके अंदर भरे हुए भय, दुश्चिंता और अनिश्चितताओं से डरकर नकारात्मकता बढ़ाते हुये श़क-सुबहे बनाने शुरू कर देते हैं।
कौस्तुभ को अपनी पहली मुलाकात में समझ में आने लगा; की कौन अंकुरित होने लायक है, और कौनसा बीज सड़ना आरम्भ कर चुका है
जैसे बीज अंकुरित होने के बाद पौधा बनना आरंभ होता है; वैसे ही कौस्तुभ को समझ में आने लगा; कि उसे किन से किसलिये दोबारा मिलना है?
जैसे बागवान अपनी जगह को नाप जो़खकर, कितनी दूरी पर, किस दिशा में कौन सा पौधा लगाना है; किसी अनुभवी विद्वान की मदद से यह निर्धारित करता है; उसी प्रकार कंपनी ने कौस्तुभ को कितने दिनों में कितनी बार, किस तरह के ट्यूटर से मिलना है, इसके बारे में खाका एक टेबल के द्वारा बता रखा था।
जिन्होंने सबसे पहले कौस्तुभ की बात मानकर, अपने पुराने विद्यार्थी समूह के व्हाट्सएप ग्रुप में; एडमिशन की सूचना शेयर की; उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी पुरानी मारुति बेच टोयोटा इनोवा हाइक्रॉस में घूमना शुरू कर दिया शान से।
जिन्होंने थोड़ा ढांढस कर, अपने गिने चुने खास-खास चहैतों के ग्रुप को लिंक भेज दिया, उन्होंने भी ₹2700 कमा ही लिए सिर्फ एक मैसेज; ग्रुप में फैला भर देने की दम पर।
जिन लोगों ने किंतु-परंतु किया था, वह अभी भी अपनी पुरानी खटारा से संतुष्ट थे।
वर्ष भर के अंदर कौस्तुभ, अपने जिले के 1800 व्यक्तियों के साथ वार्तालाप करके सम्भ्रान्त क्लब का अंग बन गया।
दूसरे साल से तो टोयोटा इनोवा हाइक्रॉस वाले गुरु जी के सानिध्य से, कौस्तुभ का जिले के धनाड्य वर्ग में मेलजोल भी बढ़ने लगा।
अब तो जिले का हर समृद्ध व्यक्ति, अपनी अगली पीढ़ी के लिए; नए अवसरों की खोज में कौस्तुभ को; अपनी पार्टियों में आग्रह पूर्वक बुलाकर; अपने बेटे-बेटियों से उनका परिचय; बड़े गर्वपूर्वक तरीके से कराने लगा है।
जहां हर कोई, अपने लायक नये अवसर की प्रतीक्षा में; उसकी बात बड़े ध्यान से सुनता है।